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शनिवार, 5 सितंबर 2020

अष्टांग योग और उसका प्रयोग

  अष्टांग योग और उसका प्रयोग 



 नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे कि अष्टांग योग क्या होता है और उसका क्या क्या प्रयोग है।


 अष्टांग योग


 परमानंद की प्राप्ति के लिए हमारे ऋषि-मुनियों ने समाज के 

 साधन स्वरूप जो व्यवस्था कि उसे योग  कहते हैं योग साधना  द्वारा ही परम सत्य की अनुभूति की जा सकती है ऋषि यों ने योग चतुष्टय का विधान किया है ।

1- भक्तियोग 

2- कर्मयोग 

3- राजयोग 

4-ज्ञान योग 


आगे चलकर अनेक आचार्य हुए और अनेक प्रकार की योग मार्गों का प्रचलन किया जैसे हठ योग , क्रिया योग , लय योग , नादानुसंधान आदि परंतु खड दर्शन में जिस युग जी से यह कहा गया है उसका संबंध पतंजलि से है। 



योग |



 ऋषि पतंजलि ने योग सूत्र में योग की परिभाषा देते हुए का योग चित्तवृत्ति निरोध (चित्त की  वृत्तियों का निरोध योग कहलाता है ) भारत में योग विद्या प्राचीन है। पातंजल योग सूत्र महर्षि पतंजलि का प्रसिद्ध ग्रंथ है ऐसी ग्रंथ के आधार पर अष्टांग योग की व्याख्या की गई है आठ अंग होने से इसे अष्टांग योग कहा जाता है।


 उसके नाम निम्न है-

 यम, नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान , समाधि


 यम



  यम 5 है -  अहिंसा , सत्य , ब्रम्हचर्य , अपरिग्रह



यम वे गुड़ हैं जिनके व्यवहारिक जीवन को सात्विक और दिव्य  बनाया जाता है और व्यक्ति को समाज में नियंत्रित व्यवहार करने में सहायता मिलती है। यह निम्नलिखित है-



 अहिंसा 

क्रिया,  बढ़िया विचार द्वारा किसी भी प्रकार की हिंसा न  करना।


 सत्य 

मन,  वचन और कर्म में सत्य का प्रयोग।


 अस्तेय

 चोरी ना करना अथार्त् दूसरों की वस्तु को उसकी अनुमति के बिना ना लेना।


ब्रम्हचर्य 

  आत्म संयम एवं सादगी पूर्वक रहकर वीर्य की रक्षा करना तथा ब्रह्म साक्षात्कार करने के प्रयास में रत्त रहना।


अपरिग्रह 

आवश्यकता से अधिक भोग्य वस्तुओं का संग्रह न करना।



योग ध्यान समाधि



 नियम 5 है 


संतोष , शौच ( शुद्धता) , तप ( सुख-दुख समान),  स्वाध्याय,  ईश्वर प्राणिधान



 नियम 

वे गुड़ हैं जो व्यक्ति के चारित्रिक विकास में सहायक हैं नियम का लाते हैं ।

यह 5 है -


शौच

शरीर और मन की सुचिता , अंतर ब्राहे स्वच्छता 


संतोष 

जो कुछ अपने पास है उसी से संतुष्ट रहना तथा किसी वस्तु के अभाव का कष्ट अनुभव ना करना।


 तप

 किसी ऊंचे दिए के लिए कष्ट सहन करना अथक परिश्रम करना।



 स्वाध्याय 

ज्ञानार्जन के लिए सद ग्रंथों का अध्ययन एवं सत्पुरुषों का समागम ।


ईश्वर प्राणिधान

 अपने कर्म और अपनी इच्छाओं का ईश्वर को समर्पण करना।




 दोस्तों आशा है कि आप लोगों को मेरी पोस्ट ज्ञानवर्धक और अच्छी लगी होगी और पूर्णतया आपसे आपको कोई ना कोई जानकारी मिली ही होगी मिलते हैं अगले पोस्ट में


 धन्यवाद


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